बेख़बरी का फ़ायदा
बेख़बरी का फ़ायदा
लबलबी दबी-पिस्तौल से झुंझलाकर गोली बाहर निकली.
खिड़की में से बाहर झांकनेवाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया.
लबलबी थोड़ी देर बाद फिर दबी-दूसरी गोली भिनभिनाती हुई बाहर निकली.
सड़क पर माशकी की मश्क फटी, वह औंधे मुंह गिरा और उसका लहू मश्क के पानी में हल होकर बहने लगा.
लबलबी तीसरी बार दबी-निशाना चूक गया, गोली एक गीली दीवार में जज़्ब हो गई.
चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी, वह चीख भी न सकी और वहीं ढेर हो गई.
पांचवीं और छठीं गोलियां बेकार गईं. कोई हलाक हुआ और न ज़ख़्मी.
गोलियां चलाने वाला भिन्ना गया.
दफ़्तन सड़क पर एक छोटा-सा बच्चा दौड़ता हुआ दिखाई दिया.
गोलियां चलानेवाले ने पिस्तौल का मुंह उसकी तरफ मोड़ा.
उसके साथी ने कहा,‘‘यह क्या करते हो?’’
गोलियां चलानेवाले ने पूछा,‘‘क्यों?’’
‘‘गोलियां तो ख़त्म हो चुकी हैं!’’
‘‘तुम ख़ामोश रहो. इतने-से बच्चे को क्या मालूम?’’